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________________ ( १३६ ) हे ? आप ही धार्मिकांके अभीष्ट वर्षणकारी इन्द्र है। धाप ही बहुतांक कक और नमस्य विष्णु हैं। सकल धन के अभिज्ञ ब्रह्म' और 'ब्रह्मणस्पति, नामक देवता आप ही हो । आप ही सबके विधाता एवं आप ही सबकी बुद्धिके सहित अवस्थान करते हो । हे अभियापही व्रतधारी 'वरुण' हो । आप शत्रु विनाशक और नमस्कार के योग्य 'मित्र' हो धार्मिक रक्षक अर्यमा' हो । आप ही अंश हो । हे देव ? यज्ञमें फल प्रदान करो। हे अभि ! इस महान आकाशमें महा बलवान (असुर) 'रुद्र' आप ही हो । आप ही 'मरुतु सम्बन्धी बल हो । आप पूषा' है। आप ही अन धनादिके ईश्वर हैं। आप 'सविता ' एवं बाप ही 'मग' हैं । उस 'रुद्र' अमिका हृदय मध्य में बुद्धि द्वारा इच्छा करते हैं । अन्य मन्त्री में भी श्रभि श्रनेक नाम · लीजिये - चन्द्रं रयिं चन्द्रं चन्द्राभिते युवस्य || ६ |६|७ पुरुनाम पुरुष्टत || ८|६३/१७ महते वृष्णोरसुरस्य नाम || ३ | ३८ | ४ भूरिनाम वन्दमानो दधाति ।। ५ । ३ । १० पर्यो अस्य ते भूरि नाम मनामहे ।। ८।११।५ अग्ने भूरीणित "अमृतस्य नाम ।। ३ ।२०|३ मित्रो अग्निर्भवति यत् समिद्धो मित्रो होता वरुणो जातवेदाः || ३||४ स्वदिते सर्वत्राता । १ । ६४ । १५ विष्णुगा शिष्टा विश्वा भुवनानिवेद | ३|५५) १० यमो हजातो यमो जनित्वम् | १ । ६६ । ४ ... ·
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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