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विश्वा अपश्यत् बहुधा ते अग्ने जातवेदः तन्नो देव एकः
इत्यादि मंत्रों का सूक्ष्म अर्थ यह है कि-हे अग्नि ? श्राप चन्द्र नामसे विख्यात हैं। हम आनन्ददायक स्तोत्र द्वारा बुलाते हैं। हमें अानन्दप्रद धन दीजिये । जब अग्नि समिद्ध उज्वल हो उठते हैं, सब उनको 'मित्र' कहते हैं। अग्नि देव ही होता एवं सर्व भूतज्ञ वरुप हैं। सबके रक्षक विष्णु अग्नि-समम भुवनको जानते हैं । जो जन्मा है और जन्मता है सभी 'यम' है । हे अग्नि ! आप ही वे यम हो। 'यमस्य जाल ममृतं यजा महे ।। १।८३ । ६ ।, १० | ५१ । १ मंत्रमें कहा गया है कि अग्निका जो नामा स्थानों में बहुषिध शरीर है. उस एक ही मान देवता जानने में समर्थ हे सोमके भी इन्द्र. सविता अग्नि, वरुणा, सूर्य श्रादि नाम हैं ! प्रमाण यथा-- विमति चारु इन्द्रस्य नाम येन विश्वानि वृत्रा जघाना
६१०६६१४ त्रिभिः देव वित्त वर्षिः सोम धाभिः अग्ने रक्षः पुनीहि नः ॥ 6 । ६७ । २६ श्रात्मा इन्द्रस्य भवसि । E८३ राज्ञोदते वरुणस्य । चतानि सहगभीरं तत्र सोम धाम ।
१।११।३ ऊद्ध्वों गन्धवों अधिनाके अस्थात् विश्वारूपा प्रति चक्षाणो अस्या भानुः शुक्रण शोचिषा व्यधोत् श्रारुरुचत् रोदमी मातरा शुचिः । ६५ । १२