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________________ सोमा रुद्रा युवमेवतानि अस्मे, विश्वातनुषु भेषजानि धत्तं (सोम रुद्र) ६ । ७४ | ३ सहस ते भेषजा ( रुद्र) ७ । ४६ । ३ हस्ते विभ्रत भेषजा बीर्याणि ( रुद्र )१ । ११४ । ५ या वो भेषजा मरुतः शुचीनि (मरुव ) २ । ३३ । १३ त्रिों अश्विना ? दिव्यानि भेषजा, त्रिः पार्थिवानि त्रिरुदत्त भदभ्यः (अश्विद्वय,) १३४६,८६।१६ पर्जन्यो न औषधिभिर्मयो भूः (पर्जन्य) ६ । ५२ । ६ सभी देवता जगनके मंगलकारक भेषज स्वरूप हैं। ययं हिष्ठा भिषजो माततमाः विश्वस्य । स्थातुर्जगतो जनित्रीः, (विश्वेदेवा) ६ । ५० । ७ इन्द्र सोमादि देवता वर्ग प्रत्येक त्रिधातु हैं एवं सभी 'त्रिधातु मंगल' प्रदान किया करते हैं। इमें जान पड़ता है कि कार्य कारण एवं कार्यकारणावस्थासे परे की अवस्था इन तीन अवस्थाओंको लक्ष्य करके ही "त्रिधातु" शब्द व्यवहत हुआ है। त्रि विशिष्ट धातुप्रतिमानी मोजसः (इन्द्र) ११०२।८,६४६७ अखिधातुः रजसो विमानः (अग्नि) ३६६,७,७२राह त्रि धातुना शर्मणा यातम् (इन्द्राग्नी) १४१२ या पः शर्म शशमानाय सन्तिः त्रिधातूनि ( मरुत ) श८५११२
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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