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________________ विश्वा..... 'दुरिताय देवी (ऊषा), ७१ ७८ । २ नयन्ति दुरिता तिरः (इन्द्र, वरुण, मित्र, अर्थमा । १। ४१३ अदितिः .... शर्म यच्छतु (अदिति) ६ । ७५ । १७ पर्षिनः पारमंहसः (द )२। ३३ । ३ तिराश्चिदेहः सुप्रथा नयन्ति ( मित्र, वरुण ) ७६०।६ ऋजू मर्येषु वृजिन्ना पश्यन् (4) ७६० । २ सभी देवता पापनाशक और मंगलकारक कहे गए हैं। यदाविर्य दयाय ( गूढं ) देवासो ? अस्ति दुष्कृतं .. आरे दधातन ( देवाः) ८।४७ । १३ विश्वस्मात्री अंहसो निम्पिपति न (विश्वेदेवा ) अभयं शर्म यच्छन् , अति विश्चानि दुरिता । १०। ६३ । ७ । १३ अन्तः पश्यन्ति वृजिनोत साधु० । २ । २७ । ३ ऋजु मत्येषु वृजिना च पश्यन् ६ । ५७ । २ सभी देवता गण मनुष्योंके गुप्त स्थानोंमें पाप पुण्यको देखते रहते हैं। ऐसा अनेक बार कहा गया है । क्या जड़ पदार्थोके लिये भी ऐसा कथन कदापि सम्भव हो सकता है ? कदापि नहीं। देवतागण जो मंगलमय औषधि धारण करते हैं सो भी सुन लीजिये--
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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