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६ १२१ । स त्रिधातु शरणं शर्म यंसन (पर्जन्य) ७१०१२ निया राय भावः बनि (मपिता) ३६६७ सविता शर्म यच्छतु अस्मे क्षयाय त्रिवरुथमहसः
सविता) ४३५३।६ त्रिधातु शर्म वहतं शुभस्पती (अश्विद्वय) ११३१६ त्रिवरूथं शर्म यसत् (विष्णु) ११५४१४ परित्रिधातुर्भुवनानि अशीहि (सोम) ६८६४५ अयं त्रिधातु "विन्ददमृतं निगृहम् (सोम) ६।४४।२४ सभी देवता त्रिधातु मंगल देने में समर्थ हैं
पढ़िये मंत्रत्रिधातु यद्वरूथ्यं तदस्मासु वियन्तन (आदित्यगण)
८४७१० विधातवः परमाः (विश्वेदेवा) श४७४ . शर्मनो यस त्रिवरूथ मंहसः (विश्वेदेवा) १०६६।५
सभी देवता 'प्रथम' एवं विश्वरूप हैं। यह बात भी हम पाठकों को श्रुतियोंमें दिखा देंगे । जैसे देवताओंमें इन्द्र प्रथम (पहला) है येसे ही सोम भी प्रथम है । अन्य देवताओंके सम्बन्ध में भी ऐसा समझिये । कहीं पहला देव अग्नि लिखा है, कही पहला देव सूर्य है। और जैसे इन्द्रदेव विश्वरूप है वैसे ही सोम भी विश्वरूप हैं | समस्तदेव विश्वरूप हैं। विश्वम्प शब्दका अर्थ यह है-कि सभी देवता सकलरूप धरनेमें शक्तिमान है । एक देवसाका एक ही कप रहता है ऐसा नहीं।