________________
( हुन्छ )
दृश्य वहाँ भी जैसा ही मनोहर पाया गया। अनवान इन्द्रके लिये ऋचा है
"अनड्वानिन्द्रः स पशुभ्यो विचष्टे त्राञ्छक्रोविमि मीते अध्वनः । भृतं भविष्यद् भुवना दुहानः सर्वा देवानां वरति व्रतानि ||" विश्वास है कि स्वर्गको प्राप्त होता है। किया गया
के ससानुपद-दोहनका ज्ञाता संतति य ऋषभके प्रति भी ऐसा ही भाव प्रदर्शित
"पिता वत्सानां परिघन्यानां साहस्त्रे पोषे अपि नः कृणोतु ।"
स्तुति भी पूर्ववत की गई
" गावः सन्तु प्रजाः सन्त्धो अस्तुतनूवलम् । तत्
सर्व
मनु मन्यन्तां देवा ऋषभदायिने ।"
गायकी महिमा गाते हुए उसमें ऋत. तप और का नित्रास
बतलाया गया
"
"ऋतं ह्यस्यार्पितमपि ब्रह्माथो तपः"
और पृथिवी - विष्णु प्रजापति आदि उसके वशमें माने गये । इसी प्रकार बाजपक्षी. चकरियों और घोड़ोंके साथ इन्द्र पूपन व वि देवोंकी स्तुतियाँ की गई हैं। सर्व भार बाहिनी प्रथिवी की स्तुति माता कहकर की गई और पृथ्वी को विश्वंभरा - हिरण्यवक्षा जगतनिवेशनी - अक्षतोभ्यष्ठा औषधिमाता कहकर चाही गई है
सत्यं वृहतमुग्रं दीक्षातपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ती सा नों मृतस्य भव्यस्य पुन्युरु' लोकं पृथिवी नः वणोतु ॥