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मेभ्यः । यजांम देवान्यदि शक्नवासमा ज्यायसः शंसमा वृक्षिदेवाः ||
स्तुतियाँ भी यही प्रमाणित करती हैं। यदि विश्वास व श्रद्धापूर्वक अभिसे प्रार्थना की गई— अस्ने ? हमारे नायकों की सम्पत्ति व कीर्ति दो" तो वरुण इन्द्र-से. मसे भी चाहा गया-
"विभ्य आभ्यः श्येनो भूत्वा चिरा या पतेपा: ।" उसी प्रकार से प्रार्थना की गई
'ददात नो श्रमृतस्यप्रजायें जिगृत रायः सूनृता मघानि' विश्वस्थ जगत- गोपा सूर्य से दीर्घजीवनकी कामना की जाती है---
4.
" पश्येमशरदः शतं जीवेम शरदः शतं "
इन्द्र व वरुण दोनोंकी उपयोगिताको स्वीकार करते कहा जाता है
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" वृत्राएयन्यः समिथेषु: जिलते वृतान्यन्यो अभि रक्षते सदा ".
अश्विने व्यवनकी जरावस्था दूर की. उसके जीवनको सुखी बनाया, उसे दीर्घायु प्रदान की. उसको युवावस्था प्राप्त कराई और बलि को भी युवा बनाया, यही तो उपासक भी चाहते थे तब अश्विन और कोई भी भेद नहीं था. पूषन द्वारा विघ्न दूर होते थे धनकी रक्षा होती थी और चौपायोंका हित होता था । विशेषता तो यह है कि कल्याणकी कामना उमी प्रवाध गतिसे पशु व वृक्षोंकी ओर भी प्रवाहित हुई और विश्वपोषणशक्तिका