SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के नामा स्थानों में स्पष्ट उल्लेख है। दो चार स्थल पद्धृत किये जाते हैं। ___ इन्द्रं मित्रं वरुण पग्नि माहुरथो दिव्यः स सुपोंगरुत्मान एकं 'सद' विप्रा बहुधा वदन्ति अग्निं पमं भातरिश्बानमाहुः ॥ (१२१६४४६) . . ___ सुपर्ण विश्रा कवयो बर्षाभिरेक 'सत्य' बहुधा कल्पयन्ति । (१०।११४॥५) यमृत्विजो बहुधा कल्पयन्तः सचेतसो यामिमं बहन्ति । (८।५८११) . एक एवामिबहुधा समिद्धः एकः सूर्यो विश्वमनु प्रभूतः। एकै बोषासर्वमिदं विभाति एक वा इदं विषभूवः सर्वम् ।। . . ( । ५८ | २) अर्धात-तत्वदर्शी जन एक ही सत्ता' का विविध नामों से निर्देश करते हैं। एक ही सवस्तु इन्द्रनाम से, परुण नाम से, अग्नि नाम से परिचित हैं । शोमन पक्ष-विशिष्ट गरुत्वमान् नाम से भी पंडिसगण उसे बुलाते हैं । यही सवस्तु अग्नि, यम और मातारिश्मा कही जाती है । सुपर्ण वा परमात्मा एक ही सत्ता मात्र है इस एक ही सत्ता को तत्व ज्ञानी गण विविध नामों में ::. ई मोमको 'सुवर्ण' कहा जाता है। दिव्यः सुपण अवकृत दम ६:। ७१ ॥ ६) प्राण शक्तिको भी 'सुपरग' कहते . . है |. (- अथर्ववेद धन्य है ) विष्णुको भी 'सुधमा कहा जा सकता है | मूर्यको भी सुपर्ण, कहा है । "सुधगों अंग: सचिंत गरमान पा जाता (१० | १४ । ३)
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy