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________________ राजा वरणो याति मध्ये सत्यानृते अवपश्यन् जनामाम् । (४६३) वह्वीनां गर्भा अपसामुप स्थात्” (१९५४) 'गुह्यं गूदपप्सु' (३।३६६) "वैश्वानरो यासु अग्निः प्रविष्टः' (१४६४) ३३१५३ एवं "सोम''''''अपा यद् गर्भोऽवृणीत देवनाम्" (६७४१) . सोम जल का गर्भ स्वरूप है। किन्तु हम ऊपर आलोचना कर चुके हैं कि ऋग्वेद में 'अग्नि' 'वरुण' प्रति शब्दों द्वारा, कार्य वर्ग में अनुप्रविष्ट कारण-सत्ता या कौतन्य ससा ही निर्देशित हुई है। सुतरां पाठक वर्ग सहज ही में समझ लेंगे कि ऋग्वेद जब भी जल के निकट कोई स्तुति प्रार्थना करता है, तभी उसका लक्ष्य भौतिक जड़ जल नहीं किन्तु जल में ओत प्रोत कारण-सत्ता ही है । कारण या अझ सत्ता के लिये ही प्रार्थना एवं उपासना की जाती है। - इस भांति भी आप समझ सकते हैं कि ऋग्वेद में जो देवता कहे गये हैं ने जड़ पदार्थ नहीं । ऋग्वेद की उपास्य वस्तु देवताओं में अनुस्यूत कारण-सत्ता अथवा ब्रह्म-सत्ता ही है। . . एक ही मूलशक्ति भिन्न २ देवताकारसे प्रकट हुई है इस बात का स्पष्ट निर्देश", हमने इतनी दूर तक, किस २ प्रणाली से ऋग्वेद में कारण'सत्ता निर्देशित हुई है इस विषय की अालोचना कर दी हैं, अब यह भी जान लेना चाहिये कि ऋग्वेद ने स्पष्ट स्वरसे भी कारणसत्ता हमें बता दी है। एक ही कारण-सत्ता अग्नि वरुणादि भिन्न देवताओं के नाम से बाहूत हुई हैं इस चात का ऋग्वेद
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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