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________________ स्वमदिने सताता (१९४।१४), मनो यक्षत् देवताता, यजीयान (१०८३.१), स्त्रोमेन हि बागे 'अग्निमंजी जनन शक्ति भिः (१०१०) इन स्थलों में श्रन विताओं का समष्टि स्वरूप कथित हुआ है सूर्य भी देवताओं का समष्टि रूप है. सो भी देखिये. इदमुत्यन्महिमहामनीकम् (शहा, सूर्य-एडल ही सकल महान् देवताओं का समूह-स्वरूप है। ऊषा को भी देवताओं का समूह-रकर कहा गया है। माता देवानाम दिनेग्नीकम् (१।११३:१६) । उसी प्रकार----इन्द्र के वन को मरुद गमों का समष्टि-स्वरूप मित्र का गर्भ-स्वाप वं वरण का नाभि-स्वरूप माना है। अत्त... इस उपलक्ष में हम पाठकों से और एक बात कहेंगे। अद्यापि दैनन्दिन उपासना और संध्याचन्दन के सगय हिन्दूगण 'जल की प्रार्थना किया करते हैं। और समुद्र, नदी भागी रथी गंगा, यमुना श्रादि की पूजा किया करते हैं। यह जल. जड़, नहीं, ऋग्वेद ने सो बात स्पष्ट कर दी है। जल के निकट जब प्रार्थना की जाती है. तब उस प्राथना का लक्ष्य जड़ जल नहीं हो सकता। जल में अनुस्यूत कारण ससा वा ग्राह्य ही उसका लक्ष्य है जल के प्रति जो हमारी पूजा-प्रार्थना है वह जड़ोपासना नहीं चैतन्य धन परमात्मा की ही उपासना है । ऋग्वेद ने हमें जताया है कि-वरुण देव मनुष्यों के पास-पुण्यों को देखते हुए जल में सञ्चरण करते हैं।" और ऋग्वेद से यह भी उपदेश पाते हैं कि अग्नि ही जल का गर्भस्वरूप है जल के भीतर अग्नि ही निरन्तर स्थित रहना है । यश्रा---
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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