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ठीक-ठाक पहचान लिया होगा, कि तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, राधा कौन है, और हमारा क्या सम्बन्ध है ! पूत न भी जाना होगा, तो इस पत्र से जान लेंगी।
देखो तो नेमी, यह जो लड़का अपने कष्टभोग की राह कृष्ण तक आ पहुंचा हैं न, यह कवि है, और मुझे पाकर इतना विह्वल हो गया है, कि रो-रोकर मुझसे आग्रह कर रहा है कि मेरे साथ इसी क्षण लोक में चलो, और वहाँ धर्म के नाम पर जो अनाचार और अज्ञान फैल रहा है, उसका विध्वंस कर, नवीन युग-धर्म की संस्थापना करो। पत्र का डिक्टेशन लेते हुए यह थकता नहीं : कहता है-लिखवाते ही जाओ प्रभु, इस पत्र का अन्त नहीं होना चाहिए।
मुझे हँसी आती है, और प्यार भी आता है, इस हठीले कवि-कुमार पर। लड़का शलाका-पुरुषीय परम्परा का जान पड़ता है। इसकी आँखों में विदग्ध्र प्यार की छलकती चितवन है, और इसका ललाट ब्रह्मतेज से देदीप्यमान है। यह लड़का मुझे बहुत प्रिय हो गया है। __मैंने इसे समझा दिया है कि अभी मेरे लोक में आने में थोड़ी देर है। अन्धकार अभी पराकाष्ठा पर नहीं पहुंचा है। तब तक के लिए मैंने इस कवि को बरदान दिया है कि : "जा, तेरी काव्य-याणी में पेरी सात सुरोंवाली अनेकान्तिनी, सप्तभंगी वंशी बजेगी ! तेरी सरस्वती के द्वारा विश्व में ज्ञान, तेज, रस, सौन्दर्य और कर्म के अश्रुतपूर्व नये स्रोत फूटेंगे। सृष्टि की जिस अपूर्व-कल्पा दिव्य रचना के लिए लोक में अब मेरा अवतरण होनेवाला है, उसका तू वर्तपान में स्वप्नद्रष्टा और क्रान्तद्रष्टा होकर रहेगा। उसका स्वप्न-दर्शन और मन्त्र-दर्शन तेरे काव्यगान द्वारा समुद्र-पर्यन्त पृथ्वी पर व्याप जाएगा।"
सुनकर, लड़के ने अनु-विहल होकर मेरे चरणों को आलिंगन में बाँध
वासुदेव कृष्ण का पत्र : तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम : 97