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बाड़े में बन्दी मृगों की और मैंने तुम्हारा ध्यान आकृष्ट किया। मैं तुम्हें सर्वचराचर वल्लभ भगवान् बनाना चाहता था मैं लोक में तुम्हारे तीर्थंकर का समवसरण रचना चाहता था । मैं तुम्हारे धर्म चक्र का संवाहक होना
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चाहता था।
... गवाक्ष पर तुम्हें देखने को चढ़ी राजुल, उधर तुम्हारी वीतराग चितवन से आत्महारा हो गयी और इधर तुम्हारी यही चितवन, पशुओं को बन्दी देखकर महाकारुणिक विश्व-प्रेम से सजल हो उठी। संयुक्त जीवन लीला के उस एक ही क्षण ने तुम्हारा संसार समाप्त कर दिया।... निमिष मात्र में ही तुम सारे बन्धन काटकर गिरनार चढ़ गये। और राजुल छाया की तरह तुम्हारी अनुसारिणी हो गयी। इस प्रसंग में लौकिक नाटक मैंने जो भी किया हो, पर अपना मनोरथ मैंने सिद्ध कर लिया। केवलज्ञान के सूर्य होकर तीर्थंकर नेमिनाथ के गिरनार से उतरने और पृथ्वी पर धर्मचक्र प्रवर्तन करने की मैं प्रतीक्षा करने लगा ।...
छैन के अज्ञान में ही जो जी रहे थे, वे नियति-नटी के नटेश्वर कृष्ण की नाट्य-लीला का रहस्य नहीं समझ सके। उन्होंने मेरे इस प्रकट में विरोधी लगते नाटक का मनमाना अर्थ लगा लिया। वे तुम्हारी और मेरी संयुक्त भागवत सत्ता के मर्म को न बूझ सके। उन्होंने मुझ पर अपने शास्त्रों में आरोप लगाया कि मैं राज्य लोभी था, और तीर्थंकर नेमिनाथ के 'बाहुबल से भयभीत होकर मैं चौकन्ना हो गया था कि कहीं अरिष्टनेमि मेरी राजसत्ता के सिंहासन को मुझसे छीन न लें। सो तुम्हारे उन भक्तों के अनुसार, मैंने ही तुम्हारे ब्याह का प्रपंच रचा। मैंने ही बाड़े में पशु धिरवाकर तुम्हें संसार से विरक्त करवाकर आरण्यक बनवा दिया। और इस तरह अपनी राजसत्ता को सुरक्षित कर, मैंने निश्चिन्त हो जाना चाहा
था ।...
मेरे कैवल्य-सूर्य, सर्वान्तर्यामी भाई नेमी, तुम्हारे सिवाय इस सत्य की साक्षी और कौन दे सकता है कि राजसत्ता का में जन्मजात विरोधी और विद्रोही था। इसी से यादवों के राजमहल को ठुकराकर मैंने कारागार में
92 : एक और नीलांजना