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तो तब तक कई विवाह हो चुके थे, पर तुम मुझसे बय में छोटे थे, और स्वभाव से ही इतने आत्मलीन थे कि रमणी और विवाह को अपने से अलग लोक में देखना तुम्हारे वश का ही नहीं था। जल कलि की उस तल्लीनता में, शबनम इतने गहरे पापादेशका बिपने-पराये के लौकिक सम्बन्धों की चेतना ही तुममें नहीं रह गयी थी।
....तुम अपनी भाभी सत्यभामा के साथ भान भूलकर जल-क्रीड़ा में खो गये थे। एकाएक सत्यभामा ने तुम्हें टोक दिया था : "नेमी, तुम तो मुझ पर इस तरह पानी उखाल रहे हो, मानो कि मैं तुम्हारी प्रिया हूँ !"
तुमने सहज बाल्यभाव से हैंसकर प्रतिप्रश्न किया : “क्या तुम मेरी प्रिया नहीं हो, भाभी ?" ____मानिनी और मोहिनी नारी को अवसर मिल गया कि अपने इस जन्मजात मौनी-मुनि, विरागी देवर के हृदय में राग जगाये, उसे उकसाये । सो सत्यभामा ने तुम्हारे पौरुष को चुनौती देकर, उसे भरपूर जगाने की चेष्टा की। वह बोली : ___“यदि मैं तुम्हारी प्रिया हो जाऊंगी, तो तुम्हारे भैया कृष्ण कहाँ जाएँगे ?"
तुमने यों ही कह दिया : "किसी और कामिनी के पास चले जाएंगे। उन्हें कामिनियों को कौन कमी है ?"
ऐसे अवसरों पर पुरुष को वशीभूत करने के लिए नारी का जैसा तरीका होता है, वैसे ही सत्यभामा ने नाराजगी का अभिनय करके, तुम्हें कलंकित करना चाहा, ताकि तुम्हारे भीतर आकर्षण अदम्य हो उठे। सो वह बोली :
"नेमी लाला, अब तक तो हम सब तुम्हें बहुत सरल समझते थे, पर मुझे क्या पता था कि तुम इतने कुटिल भी हो।"
विबाद तुम्हें कभी प्रिय नहीं रहा। तुम उत्तर दिये बिना ही, तट पर जाकर वस्त्र बदलने लगे। तुम्हारी भाभी को अवज्ञा का यह आघात असह्य हो उठा। वह भोगे वस्त्रों से ही बदहवास-सी तुम्हारे पास दौड़ी आयी।
18 : एक और नीलांजना