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उपाय कीजिए कि लोक को इन अहं-स्वार्थों से प्रमत्त मिथ्या धर्माचार्यों और राजपुरुषों की आपा-धापी से बचाया जा सके, और सत्य-संयुक्त समन्वित नवधर्म की लोक में स्थापना हो । होला दि-डे लसुन, चा एक पत्र तीर्थंकर सिद्धात्मा नेमिनाथ को लिखें : और उसके द्वारा, जो अनेक भ्रान्तियाँ और गलतफहषियों इन कट्टरपन्थी अनुयायी धर्माचारियों ने धर्म के नाम पर फैला रखी हैं, उनका प्रत्याख्यान करें। अपने और नेमिनाथ के स्वरूप की ठीक-ठीक व्याख्या प्रस्तुत करें, ताकि मामलात साफ हों, और लोक में समग्र और अनैकान्तिक सत्य को देखने की स्पष्ट और सापेक्ष दृष्टि का आविर्भाव हो सके। वह कहता है कि 'गीता' तक की स्थापित-स्वार्थियों ने स्वार्थपोषक मनपानी व्याख्याएँ कर डाली हैं, और आवश्यक है कि मैं पुनः नवयुगीन गीता का उच्चार करूँ। इस लड़के का आग्रह है कि यह पत्र मैं उसे 'डिक्टेट' करवा दूं-सो भाई, करवा रहा हूँ। तुम्हारे और मेरे बोच तो वस्तुतः पत्र का व्यवधान भी कहाँ है, पर लोक-परिचालना के लिए यह उपचार एक कारगर निमित्त सिद्ध होगा। तुम्हें पत्र लिखवा रहा हूँ, तो समस्त लोकाकाश में व्याप कर ही तो यह तुम तक पहुँच सकेगा।
...देखो तो नेमी, इन अनुयायियों की चलते ऐसा व्यंग्य घटित हुआ है, कि मानो हमारे जीवनों से वे शास्त्र नहीं निकले हैं, बल्कि ये साम्प्रदायिक शास्त्रकार ही आज के लोक में हमारे निर्माता और विधाता बन बैठे हैं। हमारे इन छद्म चरित्रकारों ने अपने-अपने पन्थ-सम्प्रदाय की पुष्टि के लिए हमें मनमाना रँगा और चित्रित किया है। उदाहरण के लिए मुझे एकमेव भगवान् बनाने की धुन में, मेरे अनुयायी आचार्यों ने, मेरे जीवन-चरित्र में से तीर्थंकर अरिष्टनेमि को एकदम ही गायब कर दिया है। तुम-हम जीवन में सदा अटूट साथ रहे, जुड़े रहे, संयुक्त सत्ता की अनिवार्य जुगल-जोड़ी
86 ; एक और नीलांजना