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" अपने में...!"
"काश, मैं अपने में रह सकता !"
मगध के सम्राट् को किस बात की कमी है ?"
"तुम्हारी...!"
"अपनी चेला को क्यों लज्जित करते हैं? मैं कहाँ चली गयी हूँ ?" "तुम्हीं जानी, रानी !"
"छोड़िए मुझे अपने बाहुबल से अर्जित विशाल मगध साम्राज्य की प्रभुता को देखिए । राजगृही के पण्यों से 'स्वयम्भू-रमण समुद्र' के रत्न परखे जाते हैं। उसके सुयोंकीएँ मण करने को उतरते हैं। उसके विपुलाचन पर तीर्थंकर महावीर का समवसरण बिहार करता है। उसके राजपथ पर धर्मचक्र प्रवर्तमान है। महाराज बिम्बिसार श्रेणिक ऐसी तीर्थभूमि के सम्राट् हैं। उन्हें किस बात की कमी है ?"
"चेलनी को, जो इस साम्राज्य से निर्वासित हो गयी हैं...!"
" अपने भीतर के अन्तःपुर में आओ देवता, मैं तो वहाँ चिरकाल से तुम्हारी प्रतीक्षा में बैठी हूँ !”
"मुझे वहाँ लिवा ले चलो, प्राण ! मेरे बस का अब कुछ भी नहीं
रहा...।"
"चलिए न कल सवेरे, 'सम्यक् उपवन' में बिहार किये कितने दिन हो गये ! वहाँ के 'अन्तर-मणि सरोवर में तुम्हारे साथ जल क्रीड़ा करने को जी चाहता है । वसन्त की पराम- शय्या पर वहाँ मृग-युगल परम केलि में लीन रहते हैं।"
"ऐसे किसी उपवन या सरोवर का नाम तो अपने साम्राज्य में हमने नहीं सुना, देवि !"
“सम्राज्ञी ने सुना है...! कल अपने 'सहस्रार - रथ' पर आपको वहाँ लिवा ले चलूँगी ! चलेंगे न मेरे साथ ?" "वहाँ कस्तूरी मिलेगी ?"
41 एक ओर नीलांजना