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अध में । ये परप स्वतन्त्र सत्ता, चितिक्ति और आत्मा कं पुस्त प्रतिनिधि हैं। ग्रे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को आन के मानवों के लिए 'गुडंट' अर्थ में परिभाषित करते हैं। ये तमाम जड़ जीर्ण, रूढ़, कुण्ठित, पुरातन मूल्यों का भंजन करके, नित-नध्य मूल्यों और सम्भावनाओं के द्वार खोलते हैं। ये मूर्तिमंजक और नवजीवन के सर्जक एक साथ हैं। ये शुद्ध, नग्न, यथार्थ, अप्रतिबद्ध (अनकण्डीशण्ड) सत्य के खोजी हैं। एक वाक्य में, ये उत्पाद यय-धौव्य-युक्त चिर-प्रगतिमयी सत्ता के सच्चे प्रतिनिधि हैं। ये उपोद्घात करते हैं, 'इनीशिएट' करते हैं, पहल करते हैं। आज के मनुष्य को अपुरातन के ध्वंस और अभीष्ट नूतन के सृजन की दिशा में अनायास परिचालित करते है।
ये पुराण, इतिहास, परम्परा की किसी भी परिधि से परिबद्ध नहीं। इन्हें महज पौराणिक, ऐतिहासिक पात्र कहकर बरतरफ नहीं किया जा सकता। मिथक के सार्वभौमिक, सार्यकालिक स्वरूप-शिल्प में रचित ये पात्र इतिहास, पुराण और परम्परा को अपने में समावेशित किये, देशकाल की सीमा का अतिक्रमण करते-से लगते हैं। इसी कारण ये अभी, यहाँ और इस क्षण तक की मानव-चेतना के प्रतिनिधि, प्रकाशक, उद्बोधक और मशालची हैं।
इन कहानियों में सर्वत्र काम-तत्व को अत्यन्त स्वस्थ और उन्मुक्त अभिव्यक्ति मिली है। किसी छद्म नैतिकता और छद्म धार्मिकता के अनुरूप काप को ट्याने या बचाकर व्यक्त करने की भीरू चेष्टा वहाँ नहीं दिखाई पड़ेगी। काम सृष्टि का मौलिक उत्स है। वह मूलतः वैश्विक ऊर्जा यानो 'कॉस्मिक एमजी' हैं। विशुद्ध और स्वस्थ काम ही जीवन-जगत् की सारी प्रवृत्तियों और रचनाओं का प्रेरणा-स्रोत है। एक तरह से वही सत्ता के परिणामी स्वभाव का सृजनोन्मुख संचरण है। संस्कृत के प्राचीन कोशकारी ने काम को आत्मा का पर्यायवाची तक कहा है। प्राक्तन भारतीय जीवन और सृजन में काम को निर्वाध और अविकल्प अभिव्यक्ति प्राप्त हुई है।
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