________________
और पल में पहल करते दिखाई पड़ते हैं।
इन कहानियों का अगर कोई नया सर्जनात्मक मूल्य हो सकता है तो यही कि, गीता में जिस 'युक्त पुरुष की, 'इण्टीग्रेटेड मैन' की बात बारम्बार कहो गयी है, उसे मैंने वास्तविक जीवन की धरती पर सहज और नितान्त मनोवैज्ञानिक ढंग से वर्तन करते और विचरते दिखाने का एक कलात्मक प्रयोग किया है। मैंने इन पात्रों को आदर्श की निजॉव पूजा मूर्तियों के रूप में नहीं डाला है। जीवन के तमाम सम्भव विकारों, स्फुरणाओं, प्रवृत्तियों के बीच ठीक आधुनिक मनुष्य की तरह बेपरदा, और बेखटक लीला - विलास करते हुए उन्हें आलेखित किया है। ये चरित्र अपनी प्रतिक्रियाओं में अत्यन्त स्वाभाविक और मानवीय होते हुए भी, प्रतिक्रिया के दुश्चक्र को अनायास तोड़कर पहल करते हैं, ताकि जीवन चेतना की उच्चतर भूमिकाओं में उत्तान्त हो । उनके निर्विकल्प वर्तन की शुद्ध क्रिया से अन्तर आत्मा का उद्बोधन हो, नये, सुन्दर, संवादी जीवन का सृजन हो । मेरे से पात्र निरन्तर नयी राहों के अन्वेषी हैं, हर कदम पर जीवन को नया तोड़ और मोड़ देते दिखाई पड़ते हैं। ये किसी पालतू आचार संहिता की कठपुतलियाँ नहीं, किसी रूढ़ नैतिकता से आवद्ध नहीं। ये अपने स्वतन्त्र आत्म- चैतन्य के सिवाय और किसी के प्रति प्रतिबद्ध नहीं। अपने स्वभाव की स्वायत्त और चिर-प्रगतिशील शक्ति से, ये हर स्थिति में विचार और आचार की नयी भंगिमाएँ उपस्थित करते हैं। ये स्थितिबद्ध (स्टैटिक) पात्र नहीं, नित्य प्रगत (डायनेमिक ) मानव इकाइयाँ हैं। मानव आत्मा के मौलिक स्वातन्त्र्य और जीवन्मुक्ति को ये 'अप टु डेट' नये मनुष्य के लिए, अपने जीवनाचरण से सर्वधा नये रूप में परिभाषित करते हैं। ये चरित्र एकबारगी ही आज के पूर्ण स्वातन्त्र्वकामी स्त्री-पुरुषों के मनोवैज्ञानिक जीवन - सहचर, प्रतिनिधि और मार्गदर्शक हैं ।
इन कथाओं या पात्रों को किसी रूढ़ अर्थ में धार्मिक कहना बहुत गलत और प्रान्त होगा। यदि ये धार्मिक हैं तो केवल मूलगत स्वभाव के
17