________________
G
०
(1
विक्रम की दूसरी शताब्दी का दक्षिण भारत है यह । कावेरी नदी जहाँ समुद्र में मिलती है, उसी संगम तट पर कदम्ब वंश के पाण्ड्यदेशाधिपति राजा कान्तिवन का हरे पत्थर का एक प्राचीन महल खड़ा है। फणिमण्डल के अन्तर्गत उरगपुर के वे एक धर्मात्मा और प्रतापी शासक हैं।
उनका इकलौता बेटा राजकुमार शान्तिवर्मन् अब अठारह वर्ष का हो चला है। जन्मजात विलक्षण मेघावी होने के कारण, राजमहल में रहकर ही उसने शस्त्र और शास्त्र की समीचीन शिक्षा पायी है। पर वह स्वभाव से ही उन्मन है। आस-पास के जगत् की हर चीज उसके मन में तीखा प्रश्न जगाती है। उसका जी रह-रहकर उचाट हो जाता है। विश्व के मूल सत्य की जाने दिन विश्व में उसका मन नहीं रहा ।
एक दिन वह अपने महल के कावेरी तटवर्ती वातायन पर खड़ा, दूर दिगन्त में निगाह लगाये था। उरगपुर के बन्दरगाह पर सुदूर देशान्तरों के जहाज आ-जा रहे हैं। कर्म- कोलाहल का अन्त नहीं। उरगपुर जनपद अपार सम्पत्तिशाली है । वह उसका भावी राजा है। उसके चरणों पर द्वीपान्तरों की रत्नराशि लोट रही है। पर इस सबसे उसका जी भरता नहीं । किसलिए यह सारा प्रपंच, यातायात ?
1
755
... ये पेड़, पहाड़, नदी, समुद्र आज हैं, कल नहीं भी हो सकते हैं। ये क्यों हैं ? इनके होने का क्या प्रयोजन हैं ?... और मैं कौन हूँ ? पैं हूँ कि नहीं ? यह विश्व सचमुच कोई पदार्थ है या निरी माया ?... क्योंकि देखते-देखते सब-कुछ बिला जाता है।... यहाँ रोग है, बुढ़ापा है, मृत्यु हैं, बिछोह है । परिवर्तन के इस चक्र में कुछ भी तो थिर नहीं। एक दिन मैं भी न रहूँगा । तब इस जगत् का जीवन का होना क्या अर्थ रखता है ? क्षण-क्षण जब सब कुछ परिवर्तमान है, तो अपने या जगत् के होने का क्या अर्थ रह जाता है ?...
... इस प्रकार चिन्तन करते हुए राजपुत्र शान्तिवर्मन् की चेतना एक
अनेकान्त चक्रवर्ती : भगवान् समन्तभद्र 121