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ऐसे ऋद्धिमान् शलाकापुरुष की देह में एकाएक गलित कुष्ठ फूट निकला । और विचित्र दैवयोग था कि उनके प्रियतम संगी, सात सौ सुभट भी देखते-देखते उसी सांघातिक महारोग से ग्रस्त हो गये। __ पुष्करवर और प्रभास द्वीपों से दिव्य औषधियाँ मंगायी गयौं। समुद्रापार से उस काल के श्रेष्ट चिकित्सक आये। कई विद्याधरों ने मणि, मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र के सारे प्रयोग उन पर आजमा लिये । पर अपने सात सौ सुभटों सहित राजा श्रीपाल का रोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही चला गया। सात सौ रोगियों के गलित होते शरीर से रात-दिन झरते लहू और मवाद की दुर्गन्ध में, चम्पा के सुरम्य वनों की सारी सुगन्धं डूब गयीं ?
प्रजा त्राहि माप का भी। आदिन की मिला: भन पारी मा में मनुष्य का जीवन-धारण असह्य हो उठा। एक ओर तो श्रीपाल-जैसे स्वरूपवान्, प्रजा-वत्सल, प्रतापी राजा के ऐसे दुष्ट रोग से आक्रान्त होने के कारण प्रजा बहुत उदास हो गयी थी। दूसरी ओर चम्पा में मनुष्य का रहना दूभर हो गया था। ___...एक दिन, नगर के बाहर, 'मनोगत' नामा चैत्य-उपवन में किन्हीं अवधिज्ञानी मुनिराज के आगमन का समाचार मिला 1 इधर से महाराज श्रीपाल अपने सुभटों सहित श्रीगुरु के चरणों की वन्दना को आ पहुँचे । उधर से चम्पा के हजारों प्रजाजन मुनीश्वर के दर्शनों को उपड़ आए। अपने राजा के और अपने परित्राण के लिए लोक-जनों ने मुनि से जिज्ञासा की :
"भगवन्, यह कैसा विपर्यय है ? श्रीपाल-जैसे कामकुमार कोटिभट महापुरुष ऐसे विषम रोग से ग्रस्त हो गये। और उनके साथ उनके सात सौ सुभट भी। बुद्धि काम नहीं करती। क्या कार्य-कारण सम्बन्ध जैसी कोई वस्तु नहीं ?" ___"हे भव्यजनो ! किन्तु वह केवलींगम्य है, बुद्धिगम्य नहीं । कषाय बड़ी सूक्ष्म वस्तु है । सो उससे उपार्जित कर्म-परमाणुओं की गति भी बड़ी कुटिल होती है। मन का छोटा-सा क्षणिक भाव-दुर्भाव कैसे दारुण कर्मपाश से आत्मा को बाँध देगा, कहना कठिन है। देह से परे, देही को जानो । वही
104 : एक और नीलांजना