SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५९) लगन मोरी पारससों लागी॥टेक ।। कमठ-मान-भंजन मनरंजन, नाग किये बड़भागी॥ लगन. ॥१॥ संकट चूरत मंगल मूरत, परम धरम अनुरागी । लगन.॥२॥ 'द्यानत' नाम सुधारस स्वादत, प्रेम भगति मति पागी लगन. ॥ ३॥ मेरी भगवन् पारसनाथ से लगन लगी है। उनके प्रति शुभ अनुराग हुआ है । वे कमठ का मान भंग करनेवाले हैं, मन को भानेवाले हैं और नाग-नागिनी के भाग्य का उद्धार करनेवाले हैं। वे सर्व संकट दूर करनेवाले हैं। मंगल कार्यों को सम्पन्न करनेवाले हैं। श्रेष्ठधर्म अर्थात् आत्मधर्म में रत रहनेवाले हैं। द्यानतराय कहते हैं कि जिसने उनके नामरूपी अमृत का आस्वादन किया, उसकी बुद्धि उनके प्रति भक्ति व प्रेम से भर गई। द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy