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(१८: : ........... : : मोहि तारि लै पारस स्वामी॥ टेक॥ पारस परस कुधातु कनक है, भयो नाम तैं नामी। मोहि.॥१॥ पदमावति धरनिँद रिधि तुमतें, जरत नाग जुग पामी । मोहि.॥२॥ तुभ संकटहर प्रगट सबनिमें, कर 'द्यानत' शिवगामी ।। मोहि. ।। ३ ।।
हे पार्श्वनाथ ! मुझे तार लेओ, पार लगा दो। पारस पत्थर के स्पर्श से लोहा भी सोना हो जाता है, ऐसा तेरा नाम प्रसिद्ध है।
दोनों नाग (युगल) जो जल रहे थे उन्होंने भी आपके कारण पद्मावती व धरणेन्द्र की ऋद्धि प्राप्त की।
आप ही संकट से मुक्त करनेवाले हो यह सर्वत्र प्रगट है, यह सब जानते हैं। द्यानतराय विनती करते हैं कि मुझे भी मोक्षमार्ग पर आरूढ़ करो।
धानत भजन सौरभ