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________________ (५७) भोर भयो भज श्रीजिनराज, सफल होहिं तेरे सब काज टेक॥ धन सम्पत मनवांछित भोग, सब विधि आन ब. संजोग॥ भोर.॥ कल्पवृच्छ ताके घर रहै, कामधेनु नित सेवा बहै। पारस चिन्तामनि समुदाय, हितसौं आय मिलैं सुखदाय। भोर. ॥१॥ दुर्लभतें सुलभ्य है जाय, रोग सोग दुख दूर पलाय। सेवा देव करै मन लाय, विघन उलट मंगल ठहराय॥ भोर.॥२॥ डायन भूत पिशाच न छलै, राज चोरको जोर न चले। जस आदर सौभाग्य प्रकास, 'द्यानत' सुरग मुकतिपदवास। भोर. ॥ ३ ॥ हे भव्य ! भोर (प्रभात) हो गई है, अब तू श्री जिनराज का भजन कर, उनका स्मरण कर, जिससे तेरे सारे कार्य सुलझ जाएँगे, सफल हो जाएंगे। जिनराज के भजन से धन, सम्पत्ति, सुख-साता की वांछित वस्तुएँ और उन्हें भोगने का अवसर सभी के संयोग जुट जाते हैं, बन जाते हैं। जो जिनराज का भजन करता है उसके घर पर मानो कल्पवृक्ष ही लग जाता हैं, मानो कामधेनु की सेवा जैसा सुख-सौभाग्य प्राप्त हो जाता है अर्थात् मनवांछित वस्तुएँ आसानी से सुलभ हो जाती हैं । पारसनाथरूपी चिंतामणि रत्न का सुलभ होना ही सब वस्तु समूह के हितकारी होने का कारण है। उन जिनराज के भजन से दुर्लभ भी सुलभ हो जाते हैं, रोग--शोक, दुःख दूर भाग जाते हैं। जो भव्य मन लगाकर ऐसे देव की सेवा करते हैं उनके सभी विघ्न भी मंगलकारी सुख- रूप में पलट जाते हैं, संक्रमण कर जाते हैं। ____ जो जिनराज का भजन करते हैं उनको भूत, पिशाच, डायन आदि के प्रकोप का भय नहीं रहता। राजा व चोर का भय नहीं होता। उन्हें यश और सम्मान की प्राप्ति होती है, सौभाग्य प्रकट होता है। धानतराय कहते हैं कि इससे ही स्वर्ग और मुक्ति दोनों की प्राप्ति होती है। धानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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