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________________ भज रे मन वा प्रभु पारसको॥टेक ॥ मन वच काय लाय लौं इनकी, छोड़ि सकल भ्रम आरसको ।। भज. ॥ १॥ अभयदान दै दुख सब हर लै, दूर करै भव कारसको। भन.॥२॥ 'द्यानत' गावै भगति बढ़ावै, चाहै पावै ता रसको। भज. ।। ३ ।। हे मेरे मन! तू सब भ्रम, संशय व आलस्य को छोड़कर भगवान पारसनाथ का स्मरण कर, भजन कर ! वे अभयदान देनेवाले हैं, दुःख को हरनेवाले हैं और भव की कालिमा को दूर करनेवाले हैं, उसका उन्मूलन करनेवाले हैं। द्यानतराय कहते हैं कि जो उनका भक्तिपूर्वक गुणगान करता है, भक्तिरस में डूबता है वह उनके समान ही आनन्द रस को पाता है। कारस - कालिमा। द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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