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________________ (६०) हमको प्रभु श्रीपास सहाय।। टेक ॥ जाके दरसन देखत जब ही, पातक जाय पलाय॥हमको.।। जाको इंद फनिंद चक्रधर, बंर्दै सीस नवाय। सोई स्वामी अन्तरजामी, भव्यनिको सुखदाय॥ हमको, ॥१॥ जाके चार घातिया बीते, दोष 'जु गये बिलाय । सहित अनन्त चतुष्टय साहब, महिमा कही न जाय॥ हमको.॥ २॥ तकिया बड़ो मिल्यो है हमको, गहि रहिये मन लाय। 'घानत' औसर बीत जायगो, फेर न कछू उपाय। हमको. ॥३॥ प्रभु श्री पार्श्वनाथ ही हमारे सहायक हैं। उनके दर्शन से सभी विभावों की ओर से चित्त हट जाता है और अपने में ही केन्द्रित हो जाता है जिससे सारे पातक-पाप भाग जाते हैं, दूर हो जाते हैं। ___ इन्द्र, फणीन्द्र, चक्रवर्ती आदि शीश नमाकर ऐसे प्रभु की वंदना करते हैं। वे ही अंतरंग की सभी बातों के ज्ञाता हैं और भव्यजनों को सुख देनेवाले हैं। जिनके चार घातिया कर्म नष्ट हो गए. सभी दोष रसविहीन हो गए। उनके अनन्त चतुष्टय, अर्थात् अनन्त दर्शन, ज्ञान, वीर्य और सुख प्रगट हुआ है। कोई उनकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकता है अर्थात् वे अवर्णनीय हैं। हमको पार्श्वप्रभु का बहुत बड़ा सहारा मिला है । उनको हदय- आसन पर आसीन करो, अंतरंग में अंकित करो। द्यानतराय कहते हैं कि ऐसा सुअवसर हाथ से निकल जाने पर फिर कोई उपाय शेष नहीं रहेगा। पातक = पाप; तकिया - सहास। धानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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