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राग ख्याल मैं नेमिजीका बंदा, मैं साहीका बंकाक * EYE. नैन चकोर दरसको तरसैं, स्वामी पूरनचंदा ।। मैं नेमिजी.।। छहौं दरबमें सार बतायो, आतम आनंदकन्दा। ताको अनुभव नित प्रति कीजे, नासै सब दुख दंदा॥ मैं नेमिजी. ॥१॥ देत धरम उपदेश भविक प्रति, इच्छा नाहिं करंदा। राग दोष मद मोह नहीं नहिं, क्रोध लोभ छल छंदा॥मैं नेमिजी. ॥ २॥ जाको जस कहि सकें न क्योंही, इंद फनिंद नरिन्दा। सुमरन भजन सार है 'द्यानत', और बात सब धंदा॥ मैं नेमिजी. ॥३॥
मैं भगवान नेमिनाथ का सेवक हूँ। मैं अपने स्वामी का सेवक हूँ, बंदा हूँ। वे पूर्णचन्द्र के समान हैं, जिनके दर्शन के लिए चकोर की भाँति मेरे नयन तरस रहे हैं। __जिन्होंने बताया कि अपना यह आत्मा ही छह द्रव्यों में सारभूत द्रव्य है, आनन्द का देनेवाला है। इसका नित्य प्रति ध्यान, स्मरण तथा अनुभूति कर, इसी में सारे दु:ख व द्वंद नष्ट हो जाते हैं।
हे भगवन् ! अरहंत रूप में बिराजमान, आप भव्यजनों के कल्याण के लिए दिव्यध्वनि द्वारा धर्मोपदेश करते हो, पर उस उपदेश को देने हेतु भी आपकी कोई इच्छा नहीं होती, नियोगवश ही वह खिरती है। उसमें राग नहीं है, मोह नहीं है, मद-अभिमान नहीं है, न ही कोई क्रोध अथवा लोभ है, न माया च छल आदि हैं।
जिनके यश का वर्णन इन्द्र, फणीन्द्र, नरेश आदि भी किसी भी प्रकार कर सकने में समर्थ नहीं हैं । द्यानतराय कहते हैं कि आप का सुमिरण ही सारे गुणगान का सार है। इसके अलावा सभी बातें मात्र उलझन हैं, फंदा हैं।
धानत भजन सौरभ