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(४४) मूरतिपर वारीरे नेमि जिनिंद ।। टेक॥ छपन कोटिया चुलन खंड कामनरिंद।। मूरति. ॥१॥ जाको जस सुरनर सब गावै, ध्यावें ध्यान मुनिंद। मूरति. ॥ २॥ 'द्यानत' राजुल-प्रानन-प्यारे, ज्ञान-सुधाकर-इंद॥ मूरति.॥ ३ ॥
मैं नेमिनाथ जिनेन्द्र की छवि पर बलिहारी हूँ।
जो छप्पन प्रकार के यादव कुलों के राजा थे, यादव कुलों के आभूषण थे, जो कामदेव की लजाते थे; जिनका यश देव, मनुष्य सभी गाते हैं और मुनि जिनका ध्यान करते हैं मैं नेमिनाथ जिनेन्द्र की उस छवि पर बलिहारी हूँ।
द्यानतराय कहते हैं कि राजुल के प्राणों के प्यारे वे नेमिनाथ ज्ञानरूपी समुद्र के इंद्र हैं मैं उनकी छवि पर बलिहारी हूँ।
द्यानत भजन सौरभ
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