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________________ ( ३५ ) राग गौरी जय-जय नेमिनाथ परमेश्वर ॥ टेक ॥ उत्तम पुरुषनिको अति दुर्लभ, बालशीलधरनेश्वर ॥ जय. ॥ नारायन बहु भूप सेव करें, जय अघतिमिरदिनेश्वर । तुम जस महिमा हम कहा जानै, भारिख न सकत सुरेश्वर ॥ जय. ॥ १ ॥ इन्द्र सबै मिल पूजैं ध्यावैं, जय भ्रमतपतनिशेश्वर ! गुन अनन्त हम अन्त न पावैं, वरन न सकत गनेश्वर ।। जय ॥ २ ॥ गणधर सकल करें श्रुति ठाढ़े, जय भव- अल-पोतेश्वर । चीनत हम छदमी कहा कह कह न सकत सरवेश्वर ।। जय ॥ ३ ॥ हे नेमिनाथ, हे परमेश्वर, आपकी जय हो। आप बालयति हैं अर्थात् बालब्रह्मचारी हैं जो उत्तम पुरुषों का एक दुर्लभ गुप्प है 1 नारायण व अनेक राजा आपकी सेवा करते हैं। आप पापरूपी अंधकार को नाश करनेवाले सूर्य के समान हो। इन्द्र आदि आपका यश, आपकी महिमा का वर्णन करने में समर्थ नहीं तब हम उस महिमा को क्या जान सकते हैं? अर्थात् नहीं जानते हैं। इन्द्र आदि सब मिलकर आपकी पूजा करते हैं। आप भ्रमरूपी तपन को नष्ट करनेवाले चन्द्रमा के समान शीतल हैं। गणधर भी आपके अनन्त गुणों का वर्णन कर सकने में असमर्थता अनुभव करते हैं तत्र हम आपके गुणों का वर्णन कर सकने में किस प्रकार समर्थ हो सकते हैं? सब गणधर खड़े होकर आपकी स्तुति करते हैं। आप भव-समुद्र से बाहर निकालनेवाले पोत (जहाज) के समान हैं । द्यानतराय कहते हैं कि जिसे ईश्वर भी कहने में असमर्थ हैं, अर्थात् समर्थ नहीं हैं उसे हम छद्मस्थ किस प्रकार कह सकते हैं ? धानत भजन सौरभ ३७
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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