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________________ इसी प्रकार तीर्थंकर अजितनाथ (१७), अभिनन्दननाथ (१८), सुपाशनाथ (१९), चन्द्रप्रभ (२०). शीतलनाथ (२१), वासुपूज्य (२२), शांतिनाथ (२३), कुंथुनाथ (२४), अरहनाथ (२५) (२६), नेमिनाथ (२८) (२९) (३५) (३७) (३८) (४४) (४५) (४६) (४७) (४८) (४९) (५२). पार्श्वनाथ (५४) (५६) (५७) (५८) (५९) (६०), महावीर (६१) (६४) (६५), बाहुबली (६६), भगवान महावीर के गणधर गौतम स्वामी (२८५) तथा अन्तिम केवली जंबूस्वामी (६७) की स्तुति की है। नेमिनाथ की वाग्दत्ता राजुल की ओर से विनती तथा राजुल के विभिन्न भावों का वर्णन भी किया है (२७) (३०) (३१) (३२) (३३) (३४) (३६) । राजुल नेमिनाथ की करुणा का सन्दर्भ देती हुई अपनी सोवाडा गन्ने कयल करती हुई.. : कहती है कि नेमिनाथ तो पशुओं पर भी करुणा करनेवाले हैं, उन्हें भी बन्धन से छुड़ानेवाले हैं फिर उन्हें मेरे प्रति करुणा नहीं आ रही (३९) (४०) (४८)? राजुल के ऐसे ही भावों को, उसकी मनोव्यथा को कवि ने भजन संख्या २७. ३०, ३१, ३२. ३३, ३४, ३६, ३९, ४०, ४१, ४२, ४३ में व्यक्त किया है । नेमिनाथ के वैराग्य से प्रभावित राजुल भी संन्यास/दीक्षा धारणकर तप करने की भावना व्यक्त करती है (५०, ५१, ५३)। तीर्थंकर की महिमा बताते हुए कवि कहते हैं कि हे प्रभु ! आप जन्म-जरा-- मृत्यु आदि रोगों को दूर करनेवाले वैद्य हैं (२०३) । आपकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता (२०५) कोई आपकी स्तुति करे या निन्दा कर, आप तो समता में ही रहते हैं (२०६)। जब गणधर भी आपकी स्तुति करने में समर्थ नहीं. हैं तो मैं आपकी स्तुति कैसे कर सकता हूँ ( २०७) ? आप अनन्त गुणों के भण्डार हैं और मैं आपके एक भी गुण का वर्णन करने में समर्थ नहीं हूँ ( २०८) ! अक्षय गुणों के भण्डार तीर्थंकरों की स्तुति करते हुए कवि कहते हैं - मुझे सदैव जिनराज के चरणकमलों की ही शरण है, अन्य कोई शरण नहीं है (१७७) । श्री जिनराज का नाम ही सार है, आधार है ( १८३) । मुझे आपका शुद्ध चेतनरूप ही प्रिय है, मुझे आपका ही भरोसा है (२२३)। इसलिए ही हम चौबीसों तोर्थंकरों की वन्दना करते हैं (१७२) । {vi ]
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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