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लोक के लिए कल्याणकारी ऐसे भव्य आत्मा का तीर्थंकर' बनने हेतु मनुष्य भत्र में 'जन्म' होना एक विशेष घटना हो जाती है, उसका जन्म' एक विशेष उत्सव हो जाता है । भावी तीर्थंकर आदिनाथ श्री ऋषभदेव के जन्म के समय पर होनेवाली खुशियों का और उन खुशियों को अभिव्यक्तिरूप मनाये जानेवाले उत्सव का अपनी कल्पना के अनुसार चित्रण करते हुए कवि द्यानतराय कह उठते हैं कि अयोध्या के राजा नाभिराय के घर आदीश्वर का जन्म हुआ है इसलिए आज अयोध्या में खुब आनन्द-बधावा है । इस समय अयोध्या की शोभा देखने लायक है। इन्द्र. इन्द्राणी तथा अन्य देवतागण भी जन्मोत्सव के मंगल अवसर पर सम्मिलित होते हैं, आनन्द और उछाह के साथ उत्सव मनाते हैं ( १) । आज तो पूरी नगरी आनन्द से सराबोर है (२) । वह घड़ी धन्य हो गई जिसमें ऋषभदेव का जन्म हुआ, इस अवसर पर इन्द्र भी अपने भावों को अपनी खुशियों को रोक नहीं ला औरयाज सध्या ३ सदाकाभिराय का घर मन्दिर जैसा पवित्र लगने लगा है (४)।
उन्हीं आदीश्वर के विवाह के अवसर का चित्रण करते हुए कवि कहते हैं कि भाई ! आज का आनन्द कहते हुए नहीं बनता (१२) । ___उन आदीश्वर ने कल्पवृक्षों के लोप हो जाने से व्याकुलजनों को कर्मभूमि के अनुसार जीवन-निर्वाह की शिक्षा दो (१५)।
गृहस्थजीवन के उपभोग के बाद जब उन्होंने संन्यास धारण कर लिया और ध्यान में लीन हो गये तब का चित्रण करते हुए कवि कहते हैं .. त्रे पर्वत के समान स्थिर खड़े हैं, ध्यान में मग्न हैं और कर्मों की निर्जरा कर रहे हैं (८)। उनके मोक्षगमन के अवसर का चित्रण करते हुए कहते हैं कि आदीश्वर जहाँ से मोक्ष गये उस कैलाश पर्वत पर प्रकृति भी अत्यन्त प्रसन्न हो उठी और सर्वत्र बसन्त ऋतु का वातावरण हो रहा है (९) । उन आदिनाथ भगवान को इन्द्र, अहमिन्द्र, चन्द्र, धरणेन्द्र आदि सभी भजते हैं (५) । कवि स्वयं को संबोधते हुए कहते हैं कि तू भी ऋषभदेव को वन्दना कर (११) । कवि कहते हैं कि मैं भी उनकी वन्दना करता हूँ और विनती करता हूँ कि मुझे भी इस संसार - सागर से तारिये (८६)। मैं उनके चरण-कमलों की वन्दना करता हूँ ताकि मेरे भी भवभव के दुःख दूर हो जायें (१०) (१३) । भक्त- हृदय कवि पृछता है कि - हे नाभिकुमार ! आप हमको पार क्यों नहीं लगाते हैं (१४} !