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(२१) तारि लै मोहि शीतल स्वामी ॥ टेक॥ शीतल वचन चंद चन्दनतें, भव-आताप-मिटावन नामी ॥ तारि.॥१॥ त्रिभुवननायक का सुखदायकः, जोकालोकले अंतस्माली परि. ॥ २॥ 'छानत' तुम जस कौन कहि सकै, बंदत पाय भये शिवगामी॥ तारि. ॥ ३ ॥
हे भगवान शीतलनाथ! मुझको तार दो, भव-समुद्र से पार लगा दो, उबार दो।
आपकी दिव्यध्वनि चन्द्रमा व चन्दन से भी कहीं अधिक शान्तिदायक है और भव-भ्रमण की तपन को मिटाने के लिए प्रसिद्ध है।
आप तीन लोक के नायक हैं, सब सुख देनेवाले हैं। लोक और अलोक, सभी के अन्तरंग की बातों को जानने व देखनेवाले हैं।
द्यानतराय कहते हैं कि आपका यशगान करने की सामर्थ्य किसमें है? जो आपकी वंदना करता है, वह ही मोक्षगामी होता है।
द्यानत भजन सौरभ