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________________ (२०) सांचे चन्द्रप्रभू सुखदाय॥टेक॥ भूमि सेत अम्रतवरषाकरि, चंद नाम” शोभा पाय॥सांचे.॥१॥ नर वरदाई कौन बड़ाई, पशुगन तुरत किये सुरराय ॥ सांचे.॥२॥ 'धानत' चन्द असंखनिके प्रभु, सारथ नाम जपों मन लाय॥सांचे. ॥३॥ हे चन्द्रप्रभ स्वामी। आप सचमुच/वास्तव में सुख प्रदान करनेवाले हैं। पृथ्वी के मर्यादित क्षेत्र में अमृत की वर्षा करने के कारण आपने चन्द्र नाम से शोभा प्राप्त की है अर्थात् दिव्य ध्वनि द्वारा उपदेश की अमृतरूप चौदनी से पृथ्वी को शान्ति प्रदान की है, ऐसे आप चन्द्रमा हैं। __ऐसे श्रेष्ठ नृपति की पशुगण भी अर्थात् तिर्यंच भी तथा इन्द्रादि देवगण भी स्तुति करते हैं, विरद गाते हैं, प्रशंसा करते हैं। धानतराय कहते हैं कि आप असंख्यजनों के स्वामी हैं इसलिए आपके सार्थक नाम की माला मन लगा कर जपनी चाहिए। छानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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