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________________ (२२) राग कान्हरा शरन मोहि वासुपूज्य जिनवरकी ।। टेक ।। अधम-उधारन पतित-उबारन, दाता रिद्धि अमरकी॥शरन.॥ १ ॥ अशरन शरन अनाथनाथजी, दीनदयाल नजरकी॥ शरन. ॥ २ ।। 'द्यानत' बालजती जग-बंधू, बंधहरन शिवकरकी।शरन. ।। ३॥ हे वासुपूज्य भगवान! मुझे आपकी ही शरण है। आप अधर्मीजनों का उद्धार करनेवाले हैं, पापियों को उबारनेवाले हैं और अमरत्व का अर्थात् अभर होने को ऋद्धि प्रदान करनेवाले हैं। जिनका कोई शरण नहीं है, आप उन्हें शरण देनेवाले हैं 1 अनाथजनों के नाथ हैं। हे दीनदयाल आपकी कृपा दृष्टि रहे। द्यानतराय कहते हैं कि आप बालयती हैं अर्थात् बाल ब्रह्मचारी हैं, जगत के बंधु हैं । बंध की श्रृंखला को तोड़नेवाले हैं और मोक्ष के प्रदाता हैं । धानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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