SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५) राग गौरी आदिनाथ तारन तरनं॥टेक॥ नाभिरायमरुदेवीनन्दन, जनम अयोध्या अघहरनं ॥ आदि.॥ कलपवृच्छगये जुगल दुखित भये, करमभूमि विधिसुखकरन। अपछर नृत्य मृत्य लखि चेते, भव तन भोग जोग धरन॥ आदि.॥१॥ कायोत्सर्ग छमास धर्यो दिढ़, वन खग मृग पूजत चरनं। धीरजधारी बरसअहारी, सहस वरस तप आचरनं ।। आदि.॥२॥ करम नासि परगासि ज्ञानको, सुरपति कियो समोसरनं। सब जन सुख दे शिवपुर पहुँचे, 'धानत' भवि तुम पद शरन ॥ आदि.॥३॥ हे भगवान आदिनाथ! आप स्व व पर को अर्थात् सबको तारनेवाले हैं। पापों का नाश करने के लिए आपका जन्म अयोध्या नगरी में नाभिराय व मरुदेवी के पुत्र के रूप में हुआ। ___काल की गति व परिणमन के कारण कल्पवृक्ष लुप्त हो गए. इसमें जो जुगलिया उत्पन्न हुए वे दुःखी हो गए। तब आपने कर्मभूमि में जीवन-निर्वाह की सुखकारी विधि बताई । अप्सरा नीलांजना की नृत्य करते समय हुई मृत्यु को देखकर उससे वस्तु-स्वरूप को जानकर आपको संसार से वैराग्य हो गया और आप भव (संसार), तन व उसके भोग से विरक्त हो गए। वन में जाकर छह माह का कायोत्सर्ग तप किया। तब वहाँ पशु-पक्षी सब आपके चरणों की वंदना करते थे। आप धैर्यवान थे । आपने एक वर्ष के अन्तराल पर आहार ग्रहण किया और सहल वर्षों तक तप-साधन किया। कर्मों का नाशकर ज्ञान का प्रकाश किया अर्थात् केवलज्ञान प्रकट किया, तब इन्द्र ने समवसरण की रचना की । आप सभी भव्यजनों को अत्यन्त आनंदित करते हुए मोक्ष पधारे। द्यानतराय कहते हैं कि भव्यजन आपके चरणों की शरण ग्रहण करते हैं। धानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy