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माजी
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स्वामी नाभिकुमार ! हमकौं क्यों न उतारो पार ॥ टेक ॥ मंगलमूरति है अविकार, नाम भजैं भजें विघन अपार ॥ स्वामी ॥ १ ॥ भवभयभंजन महिमा सार, तीन लोकजिय तारनहार | स्वामी. ।। २ ।। 'द्यानत ' आये शरण तुम्हार, तुमको है सब शरम हमार | स्वामी ॥ ३ ॥
हे भगवान आदिनाथ! हे नाभिकुमार ( नाभिराय के पुत्र ) ! आप हमें भवसागर के पार क्यों नहीं उतारते?
आपकी मूरत अविकारी है, मंगलमय है। आपके नाम जपने मात्र से अनेक विघ्न टल जाते हैं ।
आप भव-भव भ्रमण के भय से मुक्त करानेवाले हैं। आपकी यह प्रमुख विशेष महिमा है कि आप तीन लोक के प्राणियों को तारनेवाले हैं।
द्यानतराय कहते हैं कि अब हम आपकी शरण में आ गए हैं, अब हमारी लाज रखना आपके ही हाथ में हैं।
द्यानत भजन सौरभ
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