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राग धमाल मैं बन्दा स्वामी तेरा ॥ टेक॥ भव-भय मला आदि निरंजन, टूर को टुख मेगा ।। मैं ॥ १ ॥ नाभिरायनन्दन जगवन्दन, मैं चरननका चेरा ।। मैं.॥२॥ 'द्यानत' ऊपर करुना कीजे, दीजे शिवपुर-डेरा। मैं. ॥३॥
हे प्रभु! मैं आपका सेवक हूँ।
हे सर्वदोषरहित! आप भव-भ्रमण का नाश करनेवाले हैं। आप मेरा भी दु:ख दूर कीजिए।
हे नाभिराय के पुत्र ! आप जगत के द्वारा वंदनीय हैं। मैं आपके चरणों का सेवक हूँ।
द्यानतराग्य कहते हैं कि मुझ पर कृपा कर मुझे मोक्षपुरी में निवास प्रदान करें अर्थात् मुझे भी मोक्ष प्राप्त हो।
घरनत भजन सौरभ