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________________ फूली बसन्त जहँ आदीसुर शिवपुर गये। टेक ॥ भारतभूप बहसर जिनगृह, कनकमयी सब निरमये ।। फूली. ।। तीन चौवीस रतनमय प्रतिमा, अंग रंग जे जे भये। सिद्ध समान सीस सम सबके, अद्भुत शोभा परिनये॥फूली.॥१॥ बालि आदि आहूठ-कोड़ मुनि, सबनि मुकति सुख अनुभये। दीन अहाई फागनि गवा पिलगा. गीत नये नये॥फूली.॥२॥ वसु जोजन वसु पैड़ी गंगा, फिरी बहुत सुरआलये। 'घानत' सो कैलास नमौं हौं, गुन कापै जा वरनये ।। फूली.॥३॥ अहा! कैलाश पर्वत जहाँ से भगवान आदीश्वर मोक्ष को पधारे, वहाँ सर्वत्र बसन्त ऋतु अपने पूरे यौवन पर है। अर्थात् बसन्त ऋतु के पुष्प सर्वत्र लहलहाने व महकने लगे हैं । शीतल सुमधुर बयार सर्वत्र मन्द मन्द फैलकर ऋतुराज के आगमन की सूचना दे रही है और वातावरण को सुवासित व नयनाभिराम कर रही है। वहाँ इस भरत खण्ड के राजा भरत के द्वारा निर्मित तीन चौबीसी के श्रेष्ठ, सुन्दर, स्वर्णमय बहत्तर जिन चैत्यालय सुशोभित हो रहे हैं। तीन चौबीसी की रत्नजड़ित बहत्तर प्रतिमाएँ, विभिन्न रंगों में अत्यन्त शोभायमान हैं। सब सिद्धों की एकसमान प्रतिमाएँ होने से अद्भुत सुन्दर लगती हैं। वहाँ से बालि आदि साढ़े तीन करोड़ मुनि मुक्त होकर अनन्त सुख का अनुभव कर रहे हैं। तीनों अठाइयों में से फाल्गुन मास की अठाई (अष्टाह्रिका पर्व) के समय भाँति-भाँति के पक्षीगण प्रफुल्लता से भरकर, हुलसित होकर चहचहा रहे हैं, गीत गा रहे हैं। ___ जहाँ आठ योजन में आठ पैड़ियाँ हैं, जहाँ से गंगा का उद्गम है तथा जहाँ पर अनेक देवताओं का निवास है, धानतराय भगवान आदीश्वर की निर्वाणभूमि कैलाश को बार-बार नमन करते हैं, जिसका पूर्णरूपेण वर्णन करने की सामर्थ्य किस में है अर्थात् किसी में नहीं हैं। आहूठ-आहु१ साढ़े तीन। घानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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