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________________ (१०) भज श्रीआदिचरन मन मेरे, दूर होंय भव भव दुख तेरे।। टेक॥ भगति बिना सुख रंच न होई, जो ढूंढै तिहुँ जगमें कोई ।। भज.॥ प्रान-पयान-समय दुख भारी, कंठवि कफकी अधिकारी। तात मात सुत लोग घनेरा, ता दिन कौन सहाई तेरा॥ भज. ॥१॥ तू बसि चरण चरण तुझमाहीं, एकमेक है दुविधा नाहीं। तारै जीवन सफल कहावै, जनम जरामृत पास न आवै॥ भज.॥२॥ अब ही अवसर फिर जम घरै, छोड़ि लरक-बुध सद्गुरु हरें। 'द्यानत' और जतन कोउ नाही, निरभय होय तिहूँ जगमाहीं॥भज. ॥ ३ ।। ऐ मेरे मन! तू भगवान आदिनाथ के चरणों का नित्य स्मरण-चिंतन व भजन कर, उससे ही तेरे जन्म-जन्मांतर के, भव-भव के दुःख दूर होंगे। ऐसी भक्ति. विश्वास व आस्था के बिना किसी को भी तीनों लोकों में ढूँढ़ने पर भी, प्रयत्न करने पर भी लेश मात्र भी सुख प्राप्त नहीं हो सकता। जब प्राण छूट रहे हों, मृत्यु-समय समीप हो, उस समय जो विकलता. दु:ख व कष्ट होता है, कंठ कफ से अवरुद्ध हो जाते हैं, मल-विसर्जन की सारी क्रियाएँ शिथिल हो जाती हैं । उस कष्ट के समय माता, पुत्र व अन्य लोग कोई भी तेरा सहायक नहीं होता। तू भगवान आदिनाथ के चरणों में चित्त लगा और चिन्तन कर कि उनके चरण तेरे हृदय-कमल पर आसीन रहें । ऐसी भक्ति की भावना में एकमेक होकर गुंथ जा, जिससे कोई दुविधा या संशय नहीं रहे और जीवन सफल हो जाए और जन्ममृत्यु-बुढ़ापे के कोई कष्ट न हो अर्थात् जन्म, मरण और जरा से निवृत्ति का एक यही उपाय है, राह है। __ अभी अवसर है, अन्यथा फिर समीप आती मृत्यु घेर लेगी। जब तक मृत्यु न आवे तब तक लड़कपन छोड़कर सद्गुरु की शरण ग्रहण कर । द्यानतराय कहते हैं कि संसार के दु:ख दूर करने के लिए और कोई उपाय नहीं है। एक यह ही उपाय है, यत्न है, प्रक्रिया है जिससे तीन लोक के सब भय दूर होकर निर्भयता की प्राप्ति होती है। द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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