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________________ (७) तरै मोह नहीं। टेक॥ चक्री पूत सुगुनघर बेटो, कामदेव सुत ही ॥ तै,। नव भव नेह जानकै कीनौ, दानी श्रेयस ही। मात तात निहाचै शिवगामी, पहले सुत सब ही॥ तेरें.॥१॥ विद्याधरके नृप कर कीनौं, साले गनधर ही। बेटीको गननी पद दीनों, आरजिका सब ही ॥ तेरै. ॥२॥ पोता आप बराबर कीनों, महावीर तुम ही। 'यानत' आपनं जान करत हो, हम हूँ सेवक ही तर ३ ।। हे निर्मोही! तेरे कोई मोह नहीं है अर्थात् न राग है और न द्वेष है। तू वीतरागी है। आपके भरत चक्रवर्ती जैसे पुत्र हैं जो गुणों के घर थे तथा बाहुबली कामदेव भी आपके पुत्र थे। नौ भव पूर्व के नेह के कारण ही, उस कारण को जानकर, स्मरणकर राजा श्रेयांस ने आपको आहारदान दिया। आपके पुत्र अनन्तवीर्य आपसे पहले मोक्षगामी हुए, आपके माता-पिता भी निश्चय से मोक्षगामी हुए। नमि और विनमि को विद्याधरों का राजा बनाया और आपके साले कच्छ और सुकच्छ भी आपके गणधर बने। पुत्री को सब आर्यिकाओं में प्रमुख पद दिया। अपने पौत्र मरीचि के जीव को तीर्थंकर महावीर के रूप में अपने बराबर का पद दिया । द्यानतराय कहते हैं कि आप हमें भी अपना जानकर कि हम भी आपके सेवक हैं, हमारा भी उद्धार करो। कच्छ और सुकन्छ ऋषभदेव के साले थे। वे इनके बहनरवें व चौहत्तरवें गणधर थे। द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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