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________________ तुम तार करुनाधार स्वामी! आदिदेव निरंजनो। तुम. ।। सार जग आधार नामी, भविक जन-मनरंजनो॥ तुम. ॥ १॥ निराकार जमी अकामी, अमल देह अमंजनो ॥ तुम.॥२॥ करौ 'द्यानत' मुकतिगामी, सकल भव-भय-भंजनो। तुम. ॥३॥ __ हे आदिदेव ! आप दोषरहित हैं । आप करुणा-धारक हैं मुझे तारिए अर्थात् इस भव-समुद्र से पार उतारिए। आप जगत में साररूप एक प्रसिद्ध आलंबन हैं, आधार हैं, जो भव्यजनों के मन को अतिआनन्द-प्रदायक हैं। आप निराकार हैं, आपका कोई पुद्गलाकार नहीं है। आप संयमीस्वउपयोग में रत, इच्छाविहीन व कामनारहित हैं, अन्तर-बाह्य दोनों मलरहित हैं अर्थात् आपकी देह भी मलरहित है (इसलिए आपको देह-शुद्धि को भी आवश्यकता नहीं होती)। द्यानतराय कहते हैं कि मुझको मुक्ति की ओर अग्रसर कर मेरे भवरूपी भय को सम्पूर्ण रूप से, जड़मूल से नष्ट कर दो। जमी - यमी - संयमी। छानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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