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________________ जाकौं इंद अहमिंद भजत, चंद धरनिंद भजत, व्यंतरके ईश भजत, भजत लोकपाल ।। जाकौं.॥ राम भजत काम भजत, चक्री प्रतिकेसो भजत, नारद मुनि कृष्ण रुद्र, भजत गुनमाल ॥ जाकौं.॥१॥ श्रुत-ज्ञानी औधि-ज्ञानी, मनपर्जे ज्ञानी ध्यानी, जपी तपी साधु सन्त, भजत तिहूँ काल॥ जाकौं.॥२॥ राग-दोष-भाव-सुन्न, जाके नहिं पाप पुन, ऐसे आदिनाथ देव, 'द्यानत' रखवाल ॥ जाकौं.॥ ३॥ हे प्राणी! तीर्थंकर श्री आदिनाथ ऐसे रक्षक हैं जिनको इन्द्र, अहमिन्द्र भजते हैं, चन्द्र और धरणेन्द्र भजते हैं, व्यंतरों के स्वामी और लोकपाल भी भजते हैं। जिनको बलभद्र राम भी भजते हैं, कामदेव भी भजते हैं। चक्रवर्ती भजते हैं। प्रतिनारायण भी भजते हैं, नारद, मुनिगण, कृष्ण, रुद्र, सब जिनका गुनगान करते हैं, स्तवन करते हैं। श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी, ध्यान करनेवाले, जप-तप करनेवाले, साधु-सन्त, सब तीनों काल जिनका ध्यान करते हैं, स्मरण करते हैं। द्यानतराय कहते हैं कि राग-द्वेष भावों से शून्य, पुण्य-पाप से रहित ऐसे भगवान आदिनाथ ही एकमात्र रक्षक हैं, रखवाले हैं। यानत्त भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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