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________________ ( ३०४ ) राग गौरी सैली जयवन्ती यह हूजो ॥ टेक ॥ शिवमारगको राह बताये, और न कोई दूजो ॥ सैली. ॥ देव धरम गुरु सांचे जाने, झूठो मारग त्याग्यो । सैलीके परसाद हमारो, जिनचरनन चित लाग्यो । सैली ॥ १ ॥ दुख चिरकाल सह्यो अति भारी, सो अब सहज बिलायो । दुरितहरन सुखकरन मनोहर, धरम पदारथ पायो ॥ सैली. ॥ २ ॥ 'द्यानत' कह सकल सन्तनको नित प्रति प्रभुगुन गायो । जैनधरम परधान, ध्यानसौं, सब ही शिवसुख पावो ॥ सैली ॥ ३ ॥ साधर्मीजनों का यह संगम, यह साथ, सदा जयवन्त हो, जो एकमात्र मोक्ष की राह बताता है। इसके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं बताता । सच्चे देव, गुरु व शास्त्र की मान्यता कराता है तथा अन्य मिथ्यामतियों के मार्ग को त्याग कराता है। यह ही इस साधर्मी समूह का प्रसाद है कि इसके कारण जिनेन्द्र के चरणों में मन लगन लगा है, भक्ति जागृत होने लगती है। दीर्घकाल से भारी दुख सहे जाते रहे हैं, अब उनसे सहज ही छुटकारा मिला हैं। पाप हरनेवाला, सुखदेनेवाला, धर्मरूपी पदार्थ अब प्राप्त हुआ हैं । द्यानतराय सब सन्तजनों को, सज्जनों को कहते हैं कि नित्यप्रति प्रभु के गुण गावो, जैन धर्म में ध्यान प्रधान है, ध्यान करके सब मोक्ष सुख की प्राप्ति करो। साधर्मी बन्धुत्व पर आधारित हैं यह भजन | सैली = साधर्मीजनों की मण्डली जो मिलकर निश्चित कार्यक्रमानुसार पूजन भजन आदि करते हैं । ३५२ . ह्यात भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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