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________________ ( ३०५ ) आयो सहज बसन्त खेलैं सब होरी होरा ॥ टेक ॥ उत बुधि दया छिमा बहु ठाढ़ीं, इत जिय रतन सजै गुन जोरा ।। ज्ञान ध्यान डफ ताल बजत हैं, अनहद शब्द होत धनघोरा । धरम सुराग गुलाल उड़त है, समता रंग दुहूंने घोरा ॥ १ ॥ परसन उत्तर भरि पिचकारी, छोरत दोनों करि करि जोरा । इततैं कहैं नारि तुम काकी, उततैं कहैं कौनको छोरा ॥ २ ॥ आठ काठ अनुभव पावकमें, जल बुझ शांत भई सब ओरा । 'द्यानंत' शिव आनन्दचन्द छबि, देखें सज्जन नैन चकोरा ॥ ३ ॥ इस परिणमनशील संसार में, बंसत के सहज आगमन पर सब (ज्ञानीजन) होली खेलते हैं. प्रफुल्लित होते हैं। एक (उस) तरफ बुद्धि, दया, क्षमा आदि खड़ी है और दूसरी तरफ (इस तरफ) जीव / आत्मा अपने सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्ररूपी रतन - गुणों से सुसज्जित होकर खड़े हैं। बुद्धिपूर्वक दया व क्षमा को धारणकर, सम्यक्दर्शन, ज्ञान, चारित्र रूप रत्नों से सजकर अपने गुणों को जोड़ते हैं अर्थात् गुणों में एकाग्र होते हैं । ज्ञान और ध्यानरूपी डफ एक ताल व एक लय में बजते हैं। उससे फैल रही अनहद ध्वनि की गूँज की लहरें व्याप्त हो रही हैं, फैल रही हैं। धर्मरूपी शुभराग की गुलाल उड़ रही है और सब तरफ, चारों ओर समता रंग घुल रहा है. फैल रहा है। प्रश्न और उनके उत्तर के रूप में दोनों ओर से पिचकारियाँ भर-भरकर बड़े वेग से छोड़ी जा रही हैं। एक ओर तो दया, क्षमा आदि से पूछा जा रहा है कि तुम किसकी स्त्री हो? तो दूसरी ओर वे पूछती हैं कि तू किसका छोरा है ? अनुभूति की आग में अष्टकर्म जल-बुझकर सब ओर से शांत हो गए हैं। द्यानतराय कहते हैं कि मुक्तिरूपी चन्द्रमा की उज्ज्वल छवि को सज्जन पुरुषों के नयन चकोर की भाँति अति हर्षित होकर देखते हैं। काकी = किसकी; छोरा लड़का । द्यानत भजन सौरभ - "1 ३५३
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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