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जिस भाई में भाईपने का भाव भी न हो वह भला नहीं है, उससे तो वह पड़ौसी भला है जो हितकारी है। यदि भाई चतुर है तो वह पर का न्याय करता हैं और दुष्ट हो तो घर के न्याय के लिए दूसरों का दरवाजा खटखटाता है।
यश ही जीवन है, अपयश मृत्यु है । धन-यौवन तो बिजली की चमक को भाँति है । द्यानतराय कहते हैं कि संसार क्षमाशील, सन्तोषी व धर्माचरण में संलग्न कोई-कोई ही होता है/बिरला ही होता है ।
द्यानत भजन सौरभ
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