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________________ सर्वप्रथम तो भाई से आपस में लड़ाई मत करना। अगर लड़ो भी तो नीति का विचार अवश्य करना। आप परस्पर में सलाह करलें। फिर भी न हो तो पंचों की मध्यस्थता में विचार कर लेना। पर अदालत के दरवाजे मत जाना। सौना हो, रुपया हो, बर्तन हो या कपड़ा हो, घर हो या दुकान हो, इनकी कोई गिनती नहीं है। इन सबके ऊपर 'भाई' नाम के दो अक्षर है। उन पर तन, मन, धन, सब वार दीजिए, निछावर कर दीजिये। बड़ा भाई पिता के समान परमेश्वर होता है । सारा अहंकार छोड़कर उसकी सेवा कीजिए। छटा आई पुत्र के सम्मान है सरकत होने पर अपना भी उसे दे दीजिये। वंश की वृद्धि का अधिकार भी दे दीजिए। घर का दुःख-दर्द बाहर से नहीं मिटाया जाता। इसके विपरीत बाहर का दु:ख घर में विचार कर निपटाया जा सकता है, टाला जा सकता है, उसका समाधान किया जा सकता है, सामना किया जा सकता है। अरे, वह चक्र जो शत्रुओं को भयभीत कर देता है, उन्हें जीत लेता है, वह भी स्वगोत्री पर, अपने भाई पर नहीं चलता, वह भी स्वगोत्री का घात नहीं करता! कोई यदि वह कहे कि राजकार्य के लिए भाई का वध करने में कोई हानि नहीं है, तो यह कलियुग की देन है, नरक का मार्ग है। यह विदेशों में, अन्य संस्कृतियों में होता है। यह हमारे देश की, हमारे धर्म की परम्परा नहीं है। अगर भाई हिसाब रखनेवाले हों, तो गंभीरता रखो, गम खाओ, संतोष रखो। फिजूल में गँवारों की तरह मत लड़ो। लड़ाई में हाकिम लूटता है और पंचों के सामने सब बातें होती है। घर के भेद खुल जाते हैं। इससे समाज में आपस में एक-दूसरे से आँख मिलाकर बात करने की स्थिति भी नष्ट हो जाती है। पैसे के कारण तो निखट्ट (खोटे व्यक्ति हो) लड़ते हैं । वे कमाने का महत्त्व नहीं समझते । वे कमाई का सार/मूल नहीं समझते कि परिश्रम से, उद्यम से ही लक्ष्मी/धन-सम्पदा आती है इसलिए परिश्रम करो, उद्यम करो तो उसमें लक्ष्मी का निवास होता है । जैसे पंखे के हिलाने ( के परिश्रम) से पवन आती है । उस पंखे के झलने से अग्नि भी चेत जाती हैं। ३३८ धानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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