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________________ ( २९३ ) कीजे हो भाईयनिसों प्यार ॥ टेक ॥ नारी सुत बहुतेरे मिल हैं, मिलें नहीं मा जाये यार ॥ कीजे ॥ प्रथम लराई कीजे नाहीं, जो लड़िये तो नीति विचार । आप सलाह किधौं पंचनिमें, दुई चढ़िये ना हाकिम द्वार ॥ कीजे ॥ १ ॥ सोना रूपा बासन कपड़ा, घर हाटनकी कौन शुमार । भाई नाम वरन दो ऊपर, तन मन धन सब दीजे वार ॥ कीजे ॥ २ ॥ भाई बड़ा पिता परमेश्वर, सेवा कीजे तजि हंकार । छोटा पुत्र ताहि सब दीजे, वंश बेल विरथै अधिकार ॥ कीजे ॥ ३ ॥ घर दुख बाहिरसों नहिं टूटै, बाहिर दुख घरसों निरवार । गोत धाव नहिं चक्र करत है, अरि सब जीतनको भयकार ॥ कीजे ॥ ४ ॥ कोई कहै हनें भाईको, राज काज नहिं दोष लगार | यह कलिकाल नरकको मारग, तुरकनिमें हममें न निहार ॥ कीजे ।। ५ । होहि हिसाबी तो गम खाइये, नाहक झगड़े कौन गँवार । हाकिम लूटै पंच विगूचैं, मिलें नहीं वे पैसे कारन लड़ें निखट्टू, जानें नाहिं उद्यममें लछमीका बासा, ज्यों पंखेमें पवन चितार ॥ कीजे ॥ ७ ॥ कमाई सार । आंखें चार ॥ कीजे. ।। ६ ।। भला न भाई भाव न जामें, भला पड़ौसी जो हितकार । चतुर होय परन्याव चुकावै, शठ निज न्याव पराये द्वार ॥ कीजे ॥ ८॥ जस जीवन अपजस मरना है, धन जोवन बिजली उनहार । 'द्यानत' चतुर छमी सन्तोषी, धरमी ते बिरले संसार ॥ कीजे ॥ ९ ।। हे भाई! अपने भाइयों से प्यार करो। स्त्री, पुत्र आदि तो फिर मिल जाते हैं, पर माँ का जाया भाई / सहोदर ( सहजतया, बार- बार ) नहीं मिलता है। द्यानत भजन सौरभ ३३७
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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