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________________ (२३२) राग जैजैवंती चाहत है सुख पै न गाहत है धर्म जीव, सुखको दिवैया हित भैया नाहि छतियाँ ।। टेक॥ दुखौं डरै है पै भैरै है अघसेती घट, दुखको करैया भय दैया दिन रतियां ॥ चाहत.॥ १।। बोयो है बबूलमूल खायो 'चाहै अंब भूल, दाह ज्वर नासनिको सोवै सेज ततियां ।। चाहत.॥२॥ 'द्यानत' है सुख राई दुख मेरुकी कमाई, देखो राई चेतनकी चतुराई बतिया । चाहत॥ ३॥ .. हे जीव ! तू सुख चाहता है, पर सुख को देनेवाले धर्म को ग्रहण नहीं करता! ऐसी हितकारी बात तेरी छाती में, हिये में, मन में नहीं आती! तू सदा दु:ख से डरता है, पर पापों से तूने अपना घड़ा भर रखा है, जो दुःख का कारण है।दु:ख उत्पन्ना करनेवाला है और दिन-रात भयदायक अर्थात् भयकारी है। तेरी बातें ऐसी हैं जैसे कोई बबूल बोकर भूल से आम खाना चाहता है । जैसे कोई दाह व ज्वर का नाश करने के लिए गर्म-गर्म (तप्त) सेज पर सोता हो? द्यानतराय कहते हैं कि सुख राई के समान अत्यन्त अल्प/सूक्ष्म लगता है और दुःख मेरु के समान दीर्घ-विशाल लगता है। फिर भी इस चेतन राजा की चतुराईभरी बातों को तो देखो कि वह बिना किसी यल के सदा सुख की कामना करता है ! अंब - आम; बायो - बोया है। यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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