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(२१६) बंदे तू बंदगी कर याद ।। टेक॥ जिन कामोंमें तू लगा है, वे बातें सब बाद॥ बंदे.॥ कौन तेरा तू है किसका, एकला सु अनाद। लोकरंजनके लिये ना, पड़ि करमके नाद ॥ बंदे.॥१॥ भोजन आसन नींद सुदिढ़, छोड़ दे उनमाद। संग त्याग सु सदा जाग रे, भज समाधीस्वाद॥ बंदे.॥२॥ जीवत मृत्यक हो रहा है तजिये हरष विषाद। 'द्यानत' ब्रह्मज्ञानसुख रमिये, ना करिये बकवाद ।। बंदे.॥३॥
अरे भक्त ! तू भक्ति करना याद रख। जिन कामों में तू उलझ रहा है वे सब बातें व्यर्थ हैं. निरर्थक हैं।
सोच, कौन तेरा है? तू किसका है? तू अकेला है। अनाथ है ? लोक को, दुनिया को प्रसन्न करने के लिए तू कर्मों के स्वर में स्वर मत मिला अर्थात् उनके कहने में, बहकावे में मत पड़। ___ भोजन, आसन और निद्रा के कारण उत्पन्ना आलस्य व मस्ती को छोड़ दे। तू परिग्रह को छोड़कर, जाग्रत रह और ध्यान- समाधि के रस का आस्वादन कर।
तू जीता हुआ भी मरे के समान हो रहा है । सब हर्ष व विषाद को छोड़कर समता में रह । द्यानतराय कहते हैं कि तू सब बकवास, निरर्थक बातें बन्द करके ब्रह्मज्ञान में अर्थात् ध्यान-समाधि के सुख में रम जा।
बाद - व्यर्थ, निरर्थक; नाद = ऊँची आवाज, गरजना, कोलाहल, अनाद = अ-नाद = शान्त; उन्माद - अत्यधिक अनुराग ।
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धानत भजन सौरभ