SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २१७) सच्चा सांईं, तू ही है मेरा प्रतिपाल ।। टेक॥ तात मात सत शरन न कोई, नेह लगा है तेरे नाल ॥ सच्चा.॥१॥ तनदुख मनदुख जनदुखमाहीं, सेवक निपट बिहाल ।सच्चा.॥२॥ 'धानत' तुम बहु तारनहारे, हमहुको लेहु निकाल ।। सच्चा.॥३॥ हे मेरे स्वामी ! तू ही मेरा सच्चा रक्षक है। ये माता-पिता पुत्र कोई भी मेरे नहीं हैं, उनकी मुझे कोई शरण या संरक्षण नहीं है। मुझको तेरे साथ (तुझसे) अत्यन्त प्रीति उत्पन्न हुई है। इस देह का दुःख, मन का दु:ख व सबजनों में अपनेपन का दुःख, उन सब में आपके इस सेवकका हाल-बेहाल हो रहा है। द्यानतराय कहते हैं कि आप बहुतजनों को तारनेवाले हो । अब हमको भी इस भवसागर से बाहर निकाल लो। साई - स्वामी; तेरे नाल = तेरे साथ (तुझसे)। द्यानत भजन सौरभ २४७
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy