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(२१५) बंदे! तू मंदगी ना भूल । टेक॥ चाहता है सुख पोषिवेको, यह तो सूल उसूल ॥ बंदे.॥ जो कोई तुझे सूल बोर्वे, बो उसे तू फूल। तुझो फूलके फूल होंगे, उसे सूलके सूल ।। बंदे.॥ १॥ आया है क्या लेके वंदे, क्या ले जायेगा धूल। कर खैरात साहिब के नामसे, पाप जलै ज्यों तूल ॥ बंदे.॥२॥ एक साइत फरामोस न हुजै, सीख सुनो यह भूल। 'द्यानत' पाक बेएब साहिबके, नामको कर कुबूल॥ बंदे॥ ३॥
हे भक्त ! तू भगवान की भक्ति-पूजा-वंदना करना मत भूल । तू अपने भोग के लिए, विषयों के पोषण के लिए सुख चाहता है । यह कामना - यह वांछ। ही सिद्धांतत: शूल के समान है।
जो कोई भी तेरे लिए कांटे बोवे, तू उसके लिए फूल उपजा। तुझे फूल के फलरूप/बदले में फूल प्राप्त होंगे और उसे शूल के फलरूप/बदले में शूल प्राप्त होंगे।
तू आया था तब क्या लेकर आया था और जाते समय क्या धूल अपने साथ ले जायेगा? कुछ दान उस प्रभु का नाम लेकर कर तो तेरे पाप घास के ढेर के समान जल जाएँगे।
तू यह आधारभूत सीख सुन कि तू एक घड़ी भी उस भगवान को विस्मृत मत कर । द्यानतराय कहते हैं कि सर्वदोषों से मुक्त, सर्वगुणसम्पत्रा अपने प्रभु के नाम का स्मरण कर, उसे ही अंगीकार कर ।
बंदे = मनुष्य ; बंदगो = भक्ति, वंदना; उसूल = नियम, सिद्धान्त; साइत - साअत . घड़ी. समय; फरामोस-फरामोश - भूलना, विस्मरण; पाक - पवित्र; बेएब - दोषरहित।
धानत भजन सौरभ
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