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________________ (२०४) राग विलावल प्रभु तुम सुमरन ही में तारे। टेक॥ सूअर सिंह नौल वानरने, कहाँ कौन व्रत धारे ॥ प्रभु.॥ सांप जाप करि सुरपद पायो, स्वान श्याल भय जारे। भेक वोक गज अमर कहाये, दुरगति भाव विदारे। प्रभु.॥१॥ भील चोर मातंग जु गनिका, बहुतनिके दुख टारे। चक्री भरत कहा तप कीनौ, लोकालोक निहारे॥ प्रभु.॥ २ ॥ उत्तम मध्यम भेद न कीन्हों, आये शरन उबारे । 'द्यानत' राग दोष बिन स्वामी, पाये भाग हमारे ।। प्रभु.।। ३ ।। हे प्रभु! आपका पवित्र स्मरण ही इस भवसागर से पार उतारनेवाला है । नहीं तो बताएँ कि सूअर, सिंह, नेवला और बन्दर ने कौनसे व्रत धारण किए थे? उन्होंने तो आपका नाम श्रवण करने से ही सद्गति प्राप्त कर ली। ___ साँप ने भी आपका नाम जपकर स्वर्ग में देव पद पाया। कुत्ते और सियार को भय-मुक्त किया। मेंढक, बकरा व हाथी भी देव हुए और दुर्गति करानेवाले भावों का नाश किया। भील, (अंजन) चोर, (यमपाल) चांडाल और वेश्या आदि बहुतों को दुःख से मुक्त किया। भरत चक्रवर्ती ने कौन सा तप किया कि वे तत्काल ही लोक और अलोक के ज्ञाता अरहंत केवली हो गए/सर्वज्ञ हो गए ! जो भी आपकी शरण में आया उनमें आपने उत्तम व मध्यम का कोई भेद नहीं किया, जो भी आया उसी का उद्धार हो गया। द्यानतराय कहते हैं कि हे स्वामी! आप रागद्वेषरहित हैं, वीतरागी हैं, आपको हमने पा लिया है, यह हमारा सौभाग्य है। भेक - मेंढक; बोक - बकरा। १. पार्श्वनाथ जब कुमार अवस्था में थे तब एक दिन उन्होंने एक जलती हुई लकड़ी के खोखे के भीतर छिपे हुए नाग-नागिन को णमोकार मंत्र सुनाया था, जिसके प्रभाव से वे नाग-नागिन स्वर्ग में धरणेन्द्र एवं पद्मावती के रूप में उत्पत्र हुए। २३४ द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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